माहाराणा प्रताप की बेटी चम्पा थी सच्ची देशभक्त
भगवानदास आमेर के राजा भारमल का पुत्र था। मुगल दरबार में भगवानदास को ऊँचा स्थान प्राप्त था। इसके अलावा वह एक उत्कृष्ट योद्धा था, जिसने आमेर से बाहर जाकर पश्चिमी और उत्तरी भारत में कई बड़ी जंगें लड़ी और उनमें विजय प्राप्त की।
पिता राजा भारमल की मौत के बाद भगवानदास सन 1573 में आमेर का राजा बना। अपने पिता के समान ही भगवानदास को भी मुगल दरबार में काफी ऊँचा पद प्राप्त हुआ था। वह पांच हजारी मनसब तक पहुंचा था। भगवानदास को लाहौर का संयुक्त गवर्नर बनाया गया था जब मिर्जा हाकिम ने लाहोर पर आक्रमण किया तब उसे पराजित करने मेँ भगवानदास का बहुत बड़ा हाथ था। 1585 में भगवानदास को कश्मीर के सुल्तान युसुफ खान के खिलाफ लड़ने के लिए भेजा गया, जहां उससे डरकर सुल्तान ने समपंर्ण कर दिया। इस उपलब्धि पर उसके नाम से सिक्का भी प्रचलित किया गया। मानसी गंगा, गोवर्धन के तटों को पत्थरों से सीढियों को बनवाने का श्रेय भगवानदास को प्राप्त है। श्रद्धालु मानसी गंगा के चारों और दर्शनीय स्थान के दर्शन करते हुए परिक्रमा लगाते हैँ। भगवानदास को अकबर ने माहाराणा प्रताप के पास इसलिए भेजा था क्योंकि वो भी प्रताप की तरहां धर्मनिष्ट था।
उसदिन भगवान दास की भेटं सबसे पहले चम्पा से हो गई लगता है , आप महाराणा की बेटी हैं"
हाँ आपने ठीक पहनाना," चम्पा ने कहा, "मैं भारत की बेटी हूँ"
भारत की बेटी ? भगवानदास ने काहा, "लगता है तुम्हें कम सुनता है मैंने तो कहा था कि आप महाराणा की बेटी हैँ"
मैंने तो सही ही सुना है और कम सुने हमारे शत्रुओं को? मैं भारत की ही बेटी हूँ।"
ओह लगता है कोई विक्षिप्त कन्या हे," वह बड़बड़ाया, " क्या तुम महाराणा प्रतापसिंह की बेटी नही हो
हूँ ना! कह तो दिया भारत कीं ही बेटी हूँ।"
"हे भगवानदासा" लगता है दर-दर की ठोकरे खाने से महाराणा का परिवार विक्षिप्त हो गया है।
"महाराणा का परिवार विक्षिप्त नहीं हुआ! विक्षिप्त तो तुम्हारा परिवार हुआ है।
ऐ लड़की," भगवानदास का पारा थोडा चढ गया, "तुम कहना क्या चाहती हो? मेरा परिवार विक्षिप्त कैसे हो गया हे?"
इसलिए कि तुमने अपनी बेटियों को मलेछों के रंगमहल में भेज दिया है।
ओह अब समझा,” भगवानदास ने कहा, "तुम तो बाप से भी चार कदम आगे निकल गयी, बाप की आँखों पर तो देशभक्ति का रजत रंग ही चढा था, बेटी पर तो देशभक्ति के स्वर्ण रंग की परत चढ गयी है। " फिर उसने पूछा, "पर भारत की बेटी की क्या पहेली है? इसे भी बता दो जरा, जब हमारे परिवार के विक्षिप्त होने का कारण ही बता दिया तो इस पहेली को भी सुलझा दो।"
“ क्या तुम नहीं जानते की मेरे पिता ही महाराणा हैं और आज महाराणा ही भारत हैं।
तुम जैसे राजा-महाराजा सभी तो अकबर के चरणों की धूल अपने मस्तक पर लगाकर पराधीन हो गये हो, परंतु मेरे पिताश्री एकमात्र ऐसे शासक हैं, जो भारत की आन बान ओर शान का प्रतिबिम्ब बने हुए हैं।
इसलिए वे ही आज भारत हैँ और भारत ही आज़ महाराणा है। बुद्धू आयी बात अक्ल में
हाँ बेटी आ गयी बात अक्ल मेँ ।" इतना कहकर भगवानदास अपने भूतकाल के कर्मों पर विचार करता हुआ वहाँ से उल्टे पाँव ही चल दिया।
इस प्रकार राणा प्रताप को मनवाने के भगवानदास के भी सारे प्रयास असफ़ल सिद्ध हुए। उसने सोचा था की बच्चों को बहकाएगा और उन्हें अकबर की महानता के किस्से सुनाकर अकबर के दरबार मेँ चलने को प्रेरित करेगा, पर महाराणा की बेटी ने उसे ऐसा दुत्कारा कि उसे उल्टे पॉव भागना पड़ा।
जहाँगीर की माता मरियम-उजून्जामानी आमेर नरेश बिहारीमल की पुत्री की पुत्री थी । इसी प्रकार के संबंध कई अन्य राजपूतों ने भी किए, राणा प्रताप ऐसा कोई वैवाहिक संबंध नहीं चाहते थे । यही कारण है कि जब भगवानदास को बालिका ने अपने गौरवशाली इतिहास का भान कराया तो उसे उल्टे पाँव ही लोटना पड़ा।
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