गर्व से कहो हम आर्य हैं।
Aryavart आर्यवर्त (भारत) में ही मनुष्य ने सर्वप्रथम प्रथम विज्ञान और कला का अरुणोदय देखा। जब यंहा सभ्यता एंव संस्कृति अपने शिखर पर पहुंच चुकी थी तो यूरोप वाले नितांत जंगली थे।" डफ साहब का कथन है कि आर्यों का विज्ञान (vedic science) इतना विस्तरत है कि यूरोपीय विज्ञान के सब अंग वहां मिलते हैं।
सृष्टि से लेकर पाँच हजार वर्ष पूर्व तक आर्यों का सार्वभौम चक्रवर्ती " अर्थात भूगोल में एकमात्र सर्वोपरि राज्य था। आर्यावर्त से भिन्न देश मलेच्छ या दस्यु देश थे। संसार को आज ही की तरह सात महाद्वीपों में बांटा गया था। जिसे आज एशिया कहते हैं, वेदिक काल में उसका नाम जम्बुद्वीप था आर्यवर्त (भारत) इसी का एक वर्ष है जब यहां पर तोप व वायुयान थे तब यूरोप में पाषाण युग ही चल रहा था।
वेदों में सब पदार्थ एंव सब विदयाओं का वर्णन है। लेकिन यह गहन अनुसंधानों के बाद ही संभव है। आधुनिक युग में यदि कोई विदवान अपने अविद्यान्ध्रकार को हटाकर ज्ञान को प्रकाशित कर देता है तो वह समझता है कि मैंने एक नया आविष्कार किया है। भोले-भाले अन्य मनुष्य भी समझने लगते हैं कि इस विद्वान ने ही नई खीज की है और इससे पहले इस बात का किसी को पता ही नहीं था। यह उनकी बडी भूल होती है। वेदिक युग में सब ज्ञान प्रकाशित था। धीरे…धीरे अज्ञान अन्धकार से विज्ञान का वह प्रकाश लुप्त हो गया। इतनी बात तो अवश्य है कि उस विद्वान ने इस युग में ज्ञानान्धकार हटाकर पुंनआंविष्कार किया, अपनी योग्यता से नई बात का पता लगाया।
यह कहना सर्वथा ही अनुचित है कि इससे पहले कभी किसी को इस बात काज्ञान था ही नहीं।
ईसाई पादरी मैक्समूलर (मोक्षमूलर) ने एक स्थान पर लिखा है कि में आपको पुन: स्मरण कराता हूँ कि वेद में अधिकांश बालकों औंर मूर्खा की बातें हैं। पादरियों द्वारा आर्यों को गंवार तथा धुमकड बताया गया। दरअसल मैक्समूलर यदि वेदों में विज्ञान सिद्ध कर देते तो यह बाइबल के विरूद्ध होता और बाइबल, के विरूद्ध बोलने का परिणाम होता सजा ए-मौत इसलिए उन्होंने सत्य को दबा दिया, लेकिन सत्य भला कभी दबाया जा सकता है? कदापि नहीं।
रेवरेन्ड मौरिस फिलिप नामकं ईसाई पादरी ने मैक्समूलर के बयानो पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए लिखा है कि हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि वैदिक आर्यों के ईश्वरादि विषयक पवित्रता और उच्चतर विचार एक प्रारम्भिक ईश्वरीय ज्ञान के परिणाम थे।
आर्य उच्चकोटि "के विद्वान थे, इसको हम इस प्रकार सिद्ध कर सकते है:-
1. आर्य साहित्य में विज्ञान शब्द का अर्थ साइन्स के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। जैसे ‘एतदुविज्ञानम्' - शतपथ 3-3-4
इति विज्ञायेत‘-यास्कीय निरूक्त एवं कल्पसूत्र
संस्कृत व्याकरण में विद नामक चार धातुएँ हैं जिनसे 'वेद' शब्द बन सकता है -विद सत्तायाम् (विद्यते), विद ज्ञाने (वेति), विद विचारणे (वेविन्ते) ’और विद्रल लाभे (विन्दति) । इन चारों धातुओं से बनने वाले शब्द 'आश्चर्य चकित करने वाले हैं। मनुष्य जाति के अस्तित्व में आते ही (विद सतायाम), ज्ञान प्राप्ति के लिए (विद ज्ञाने), विचारपूर्वक (विद विचारणे), संसार के लाभ के लिए (विद्र्ल्र लाभे) अपनी जो महान विरासत परमात्मा ने छोडी है, उसी का नाम वेद है। ’वेद' शब्द लिट् लकार में नहीं बनता, केवल लट् लकार में ही बनता है, जो वर्तमान काल का घोतक है। वेद भूत काल से मुक्त है अर्थात् वह सतत् प्रत्यक्ष है।
अत्त: जब वेद नहीं रहेंगे तो सृष्टि भी नहीँ रहेगी। वेदिक वानप्रस्थिर्यों और ऋषियों ने जंगलो के बीच निरोग जलवायु में वेदों पर अनुसंधान करके क्रमबद्ध ज्ञान प्राप्त किया, क्रमबद्ध ज्ञान -विज्ञान कहा गया और आर्यों का यह विज्ञान मानव कल्याण के लिए था, उनकी शिक्षाएं नैतिकता व नम्रता के लिए है क्योंकि ऋषियों का व्यवहार स्वच्छ व निष्काम था।
सृष्टि से लेकर पाँच हजार वर्ष पूर्व तक आर्यों का सार्वभौम चक्रवर्ती " अर्थात भूगोल में एकमात्र सर्वोपरि राज्य था।
2. पृथ्वी के आकार का ज्ञान पुराणों में इंगित पड़माकार, अंडाकार से होता है- शतपथ में परिमण्डल रूप भी पृथ्वी की गोलाकार आकृति का. घोतक है" ऋगवेदानुसार भी पृथ्वी गोल है तथा सूर्यं के आकर्षण पर ठहरी है।
3. यजुर्वेद के अनुसार पृथ्वी जल के सहित सूर्य के चारों और घूमती जाती है। भला आर्यों को गंवार कैसे कहा जा सकता है ? गृह परिचालन सिद्धांत को महाज्ञानी ही लिख सकते हैं।
4. वेदों में सूर्यं को वर्घन कहा गया है, अर्थात् पृथ्वी से सैकडों गुणा बडा व करोडों कोस दूर। क्या घुमन्तु जाति ऐसा अनुमान लगा सकती थी।
5. अथर्ववेद में भूत-प्रेत, ताबीज बनाने का विवरण कहीं भी नहीँ बल्कि कर्मबद्ध विज्ञान ही है। जैसे -’जिस तरह चन्द्रलोक सूर्यं से प्रकाशित होता है, उसी तरह पृथ्वी भी सूर्यं से प्रकाशित होती हे।
6. सूर्य की सात किरणों का ज्ञान संसार में सबसे पहले आर्यों ने ही ज्ञात किया। आर्यों ने ही विश्व को बताया कि सूर्यं की सात किरणे दिन को उत्पन्न करती हैं। इतना ही नहीं आर्यों ने सूर्य के अन्दर सर्वप्रथम काले दागों को भी देखा था।
7. आर्यों को सूर्यं-चन्द्र ग्रहण' के वैज्ञानिक कारणों का ज्ञान था तथा पृथ्वी की परिधि का भी। भास्कराचार्य ने इस पृथ्वी के गोल होने और उसमें आकर्षण (चुम्बकीय) शक्ति होने के सिद्धांतों का प्रतिपादन वेदाध्ययन के आधार पर ही किया क्योकि वेद सब सत्य विद्याओं का सार है। उन्होंने लिखा कि गोले की परिधि का 100 वां भाग एक सीधी रेखा प्रतीत होता है हमारी पृथ्वी भी एक बडा गोला है। मनुष्य को उसकी परिधि का बहुत ही छोटा भाग दीखता है। इसलिए वह चपटी दिखती है। “ वेदो के आकर्षण सिद्धांत का भावार्थ करते हुए न्यूटन से कई शताब्दियों पहले भास्कराचार्य ने थ्योंरी आफ ग्रेविटेशन इतनी उत्तमता से लिखा कि इसे देखकर आश्चर्य होता है।
उन्होंने लिखा कि पृथ्वी अपनी आकर्षण शक्ति के जोर से सब चीजों को अपनी ओंर खींचती है। इसलिए सभी पदार्थ उस पर गिरते हुए नजर आते है।" इन्हीं सिद्धांतों को पढकर फ्रांस निवासी जेकालयट ने अपनी पुस्तक (दि) बाइबल इन इंडिया में लिखा है कि सब विद्या भलाइयों का भंडार आर्यावर्त है। आर्यावर्त से ज्ञान-विज्ञान को अरब वालों ने लिया और अरब से ही यूरोप पहुंचा। एक साक्ष्य यह भी है कि खलीफा हारूंरशीद और अलमामू ने भारतीय ज्योतिषियों को अरब बुलाकर उनके ग्रन्धों (वेदों , उपनिषदों) का अरबी में अनुवाद करवाया।
आर्य ग्रीकों और अरबों के गुरू थे। आर्यभट के ग्रन्धों का अनुवाद कर धर्मबहर नाम रखा गया अलबेरुनी लिखता है कि अंकगणित शास्त्र में हिन्दू लोग संसार की सब जातियों से बढकर हैं। मेंने अनेक भाषाओं के अंकों के नामों को सीखा परन्तु मैंने किसी भी जाति में हजार से आगे के लिए कोई नाम नहीं पाया। परन्तु हिन्दू (आर्य) लोगों में 18 अंक तक की संख्याओं के नाम हैं और वे उसे परार्ध कहते हैं। यजुर्वेद में निम्नलिखित संख्या में ईंटों का कुंड बनाने की शक्ति देने के लिए ईश्वर से प्रार्थना की गई है:-
एक 1
दश 10
शत 100
सहस्त्र 1000
अयुत 10000
नियुत 100000
प्रयुतम 10000000
अवुर्द 100000000
न्यवुर्द 1000000000
समुद्र 100000000000
मध्य 10000000000000
अनंत 1000000000000000
परार्ध 100000000000000000
इतना ही नही वेदों में पाहाडों का वर्णन भी है, वर्गमूल, भिन , रेखागणित , आदि का विस्त्रत वर्णन यजुर्वेद में है।
8. आर्यों का साहित्य उच्चकोटि का है । किरातार्जुनीय में तो भारवि ने शब्द वैचित्र्य के अदभुत और उत्तम उदाहरण द्वारा संसारभर को आर्य साहित्य से अवगत करा दिया। एक श्लोक में न के सिवाय और कोई अक्षर नही सिर्फ अन्त में त हे'
न नोननुत्रो नुत्रोनो नाना नानानना ननु ।
नुत्रोsनुत्रो ननुन्नेनो नानेनानुत्रनुनुत ।।
-किरातार्जुनीय 15-14
आठवीं सदी में कविराज ने ’राघव-पाण्डवीय ग्रंथ रचा । जिसके प्रत्येक श्लोक के दो अर्थ हैं, एक रामायण की कथा बतलाता है दूसरा महाभारत की उदाहरण स्वरूप नीचे लिखे पद्य का अवलोकन कीजिए"-
नृपेण कन्या जनक्रेन दित्सितामयोनिजालम्भयितु स्वयंवरो ।
ट्टिजप्रकर्षण स धर्मनन्दन: सहानुजस्तां भुवमप्यनीयत ।।
इसी प्रकार वाल्मीकि एवं कालिदास की प्रसिद्धि से संसार में भला कौन अवगत नहीँ है
9. आर्यों ने ग्रहण देखने के लिए तुरीय (दूरबीन) का आविष्कार किया था। शिल्प संहिता में लिखा है किं पहले मिटटी को गलाकर कांच तैयार करें, फिर उसको साफ करके स्वच्छ कांच (लैन्स बनाकर) को बांस या धातु के आदि , मध्य और अन्त में लगाकर फिर ग्रहणादि देखें। वेद में भी लिखा है की चन्द्र की छाया से जब सूर्य ग्रहण हो तब तुरिययन्त्र से आँख देखती है।
10. वेदों में ध्रुव प्रदेश में होने वाले छ - छ: मास के दिन-रात का भी वर्णन है। ध्रुवों में छ: मास का दिन व छ: मास की रात्रि मालूम करना ज्योतिष ओंर भूगोल के महान सूक्ष्म ज्ञान पर ही अवलम्बित है। पृथ्वी पर ऐसी कोई जगह न बची थी जिससे आर्य अपरिचित हों तभी तो आर्य साहित्य में लिखा है कि जिस समय लंका में सूर्य उदय होता है, उस समय यमकोटि नामक नगर में दोपहर, नीचे सिद्धपुरी में अस्तकाल और रोमक में दोपहर रात्रि रहती है। अत: रोबर्ट को उत्तरी ध्रुव का खोजकर्ता कहना गलत है।
11. ऐतरेय और गोपथ ब्राह्मण में लिखा है कि न सूर्य कभी अस्त होता है, न उदय होता है। वह सदैव बना रहता है, परन्तु' जब पृथ्वी से छिप जाता है तब रात्रि हो जाती है और जब पृथ्वी आड से हट" जाती है तब दिन हौ जाता है। ऐसी दशा में कौन कह सकता है कि खगोलिक भूगोल का शुक्ष्म ज्ञानं आर्यों ने आविष्कृत(vedic science) नही क्या।
मित्रों आज इस लेख में इतना ही अगले लेख में 32 और प्रमाण दूंगा जो ये सिद्ध करेंगे की आर्य जाती ही सर्वश्रेष्ट थी, है और रहेगी बस हमें फिरसे आर्य बनना पड़ेगा
मित्रों हमारे नए लेख सीधे अपने फेसबुक पर प्राप्त करें हमारे इस पेज को लिखे करें https://www.facebook.com/maabharti
keyword :- vedic science , आर्यों का ज्ञान एव विज्ञान , history of aryavart in hindi , history of bharat in hindi , history of vedic science in hindi , aryavart ka itihas , aryo ka itihas