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6 habits जो बनादेंगी आपको दुनिया का सबसे कामयाब इन्सान

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गाँधी ने लगवाया शिवाबानी पर प्रतिबन्ध
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बाल प्रत्येक इन्सान के झड़ते हें, यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया हे, बाल अपनी पूरी लम्बाई तक बढ़ जाने के बाद झड़ जाते हें, उनकी जगह नए बाल उग आते हें, लेकिन यदि बहुत अधिक बाल झड़ें तो यह एक समस्या हो सकती हे,
निश्चित अवधि के बाद प्रत्येक बाल की विरधी अपने आप ही रुक जाती हे, मनुष्य की शारीरिक स्थिति के अनुसार केश का निम्न भाग जब अभिशोषित हो जाता हे तो पुराना बाल रोम कूप से अलग हो जाता हे इसी रोम कूप से अलग हो जाने की क्रिया को “बालों का गिरना” कहा जाता हे तत्पश्चात उसकी जगह नया बाल निकल जाता हे,
बालों के टूटने के मुख्य कारण –
खून की कमी, बालों की जड़ों में किसी रोग का होना, गर्मी आदि की बीमारी, रुसी, बालों का पोषण रुक जाने अथवा धुप में अधिक खुले सिर रहना,
अनुवांशिक कारण होना जेसे माँ के बाल गिरते रहे हों तो बेटी के भी कम उम्र में बाल गिरेंगे,
सिर में सफेद दाग की बीमारी ( leucoderma ) होने से,
भोजन में पोषक तत्वों की कमी के कारण भी बाल झड़ते हें,
अधिक रोग हो जाने पर भी बाल अधिक झड़ते हें,
बालों की उच्चित सफाई ना होने पर फोड़े, फुंसी, दाग, खुजली आदि हो जाते हें, इनके कारण भी बालों के रोम कूप नष्ट होने लगते हें, और बालों का झड़ना गिरना प्रारम्भ हो जाता हे,
बालों को स्वस्थ बनाये रखने के उपाए-
तेल- बालों को स्वस्थ और सुंदर बनाये रखने के लिए बालों में तेल डालना आवश्यक हे, आज कल लोग बालों को रुखा रखते हें, जिसके कारण बालों की जड़ें कमजोर हो जाती हें, बालों को मजबूत करने के लिए नारियल का तेल, बादाम रोगन , सरसों का तेल , आदि से अच्छी प्रकार मालिस करनी चाहिये जिससे आपके बाल मजबूत हो जायेंगे,
नीम- सिर के बाल गिरना आरम्भ ही हुए हों तो नीम और बेर के पत्तों को पानी में उबाल कर बालों को धोएं, बाल गिरना बंद हो जायेंगे, बाल काले ही रहेंगे और लम्बे भी हो जायेंगे,
आंवला- सूखे आंवले को रात में भिगो दें, प्रातः इस पानी से सिर धोएं, इससे बालों की जड़ें मजबूत होती हें, बालों की सुन्दरता बढती हे, मष्तिष्क और नेत्रों को लाभ फोंचता हे,
कर्म कल्ला- पत्ता गोभी के 50 ग्राम पत्ते रोज एक महा खाने से गिरे हुए बाल फिर उग जाते हें,
गेहूं- गेहूं के पत्तों का रस रोज एक महा पिने से बाल गिरने बंद हो जाते हें,
चोलाई- बाल गिरते हों तो चोलाई की सब्जी लाभदायक हे,
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गुणकारी नींबू के विविध प्रयोग भाग-1
पथरी (concretion) – एक गिलास पानीमें एक नीबू (lemon) निचोड़ कर सेंधा नमक मिलाकर सुबह-शाम दो बार नित्य एक महीना पीनेसे पथरी पिघलकर निकल जाती है
पथरीका दर्द- अँगूरके (Grapes) साठ पत्ते आधा नीबू निचोड़कर पीसकर चटनी बना लें । इसे दो चम्मच हर दो घंटेमें तीन बार खानेसे पथरीसे होनेवाला दर्द दूर हो जायगा।
नाख़ून (Nails) – नाखूनों पर नित्य नीबू रगड़े, रस सूख जानेके बाद पानीसे धोयें । इससे नाखूनोंके रोग ठीक हो जाते हैं
बाल गिरना (hair loss), रूसी (dandruff)- एक नीबूके रसमें तीन चम्मच चीनी, दो चम्मच पानी मिलाकर, घोलकर बालोंकी जडोंपें लगाकर एक घंटे बाद अच्छे- से सिर धोनेसे रूसी दूर हो जाती है । बालों का गिरना रुक जाता है।
गंजापन (Baldness) – ( 1 ) नीबूके बीजोंपर नीबू निचोड़कर एवं पीसकर बाल उडी हुई जगह (जंहा गंजा हे) -पर लेप करनें से चार-पाँच महीने लगातार लगानेपर बल उग आते हैं
2) तीन चम्मच चनेके बेसनमें एक नीबूका रस, थोडा पानी डालकर गाढा घोल बनाकर गंजपर लेप करें तथा सूखनेपर धोयें”, फिर समान मात्रामें नारियलका तेल, नींबू का रस मिलाकर सिरमें लगायें । बाल आ जायेंगे
सिर मैं फुंसियाँ, खुजली, त्वचा सूखी और कठोर हो तो बालों में दही लगाकर दस मिनट बाद सिर धोवें । बाल सुख जानेपर समान मात्रामें निम्बू का रस और सरसोंका तेल मिलाकर लगायें । यह प्रयोग लम्बे समयतक करें
ह्रदयकी धडकन – नीबू ज्ञान – तंन्तुओंकी उत्तेजना को शान्त करता है । इससे ह्रदय की अधिक धड़कन सामान्य हो जाती है । उच्च-रक्तचापके रोगियो की रक्त-वाहिनियो को यह शक्ति देता है
कमर दर्द (back pain) – चौथाई कप पानी में आधा चम्मच लहसुनका रस और एक नीबूका रस मिलाकर दो बार नित्य पीयें। यह पेय कमर-दर्दमें लाभदायक है।
आमवात, गठिया, जोडोंके दर्द (joint pain) में- नित्प प्रात: एक गिलास पानीमें एक नींबू निचोड़कर पीयें । नींबू की फांक दर्द वाली जगहपर रगड़कर फिर स्नान करें
गलादर्द, गलाबेठना, गलेमेललाई – होनेपर एक गिलास गरम पानीमें नमक और आधा नींबू निचोडकर सुबह-शाम गरारे करें
नेत्र-ज्योंतिवर्धक – एक गिलास पानीमें एक नीबू निचोड़कर प्रात: भूखे पेट हमेशा पीते रहें ।नेत्रज्योति ठीक बनी रहेगी । इससे पेट साफ रहता है, शरीर स्वस्थ रहता है । नीरोग रहनेका यह प्राथमिक उपचार है
अपच – यदि भोजन नहीं पचता हो, खट्टी डकारें आती हों…-
(1) पपीतेपर नीबू काली मिर्च डालकर सात दिनोंतक प्रात: खायें।
(2 ) भोजन के साथ मूलीपर नमक, नीबूडालकर नित्य खायें
(3) नीबूपर काला नमक, काली मिर्च डालकर तिन बार नित्य चूसें । अपच तथा पेटके सामान्य रोग ठीक हो जायेंगे: भूख अच्छी लगेगी
(४) खानेसे पहले नीबूपर सेंधा नमक डालकर चूसें ।
भूख- भोजन करनेके आधाघंटा पहले एक गिलास पानी में नींबू निचोड़कर पीनेसे भूख अच्छी लगती हे
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custard apple सीताफल के फाएदे
अगस्तसे नवम्बरके आसपास आनेवाला (Custard apple) सीताफल एक स्वादिष्ट फल है
आयुर्वेदके मतानुसार सीताफल शीतल, पित्तशामक, पौष्टिक, तृप्तिकर्ता, मांस एवं रक्तवर्धक, उल्टी ब्न्द्ब करनेवाला , बलवर्धक, वातदोषशामक और ह्रदयके लिए हितकर है
आधुनिक बिज्ञानके मतानुसार सीताफ़लमें केल्सियम, लोहतत्व, फास्फोरस, विटामिन, थायमिन, रिवोफ्लोविन एवं विटामिन ‘सी इत्यादि अच्छे प्रमाणमैं होते हैं
जिन लोर्गोंकी प्रकृति गरम अर्थात् पित्तप्रधान है, उनके लिये सीताफल अमृतके समान गुणकारी है
जिन लोगों का ह्रदय कमजोर हो, ह्रदयका स्पन्दन खूब ज्यादा हो, घबराहट होती हो, उच्च रक्तचाप हो ऐसे रोगियोंके लिये भी (custard apple benefits) सीताफलका नियमित सेवन हृदयको मज़बूत एवं क्रियाशील बनाता है।
जिन्हें खूब भूख लगती हो, आहार लेनेके उपरान्त भी भूख शान्त न होती हो…ऐसे ‘भस्मक’ रोगमें भी सीताफलका सेवन लाभदायक है।
विशेष-सीताफल गुणमेँ अत्यधिक ठंडा होंनेके कारण ज्यादा खाने से सर्दी होती है, ठंड लगकर बुखार आने लगता है, अत: जिनकी कफ-सरदी की तासीर हो ऐसे व्यक्ति सीताफलका सेवन न करें पाचनशक्ति मंद हो, उन्हें सीताफल का सेवन सोच-समझकर सावधानी से करना चाहिये, अन्यथा लाभके बदले हानि होतो है।
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acupressure ( एक्यूप्रेशर देने का सही ढंग )
अधिक एक्यूप्रेशर दबाब देने के लिए एक अंगूठे पर दूसरा अंगूठा रख के प्रेशर देना चाहिए
कुछ केन्द्रों, विशेषकर पीठ पर दोनों अंगूठों के साथ Acupressure प्रेशर दें जेसे आकृति 6 में दिखाया गया हे, कुछ केन्द्रों जेसे पेट पर हाथ की 3 अँगुलियों के साथ प्रेशर दें जेसे आकृति 7 में दिखाया गया हे
आकृति 8
पैरों तथा हाथों में सारे प्रतिबिम्ब केन्द्रों पर बिना किसी व्यक्ति की सहयता के आसानी से प्रेशर दिया जा सकता है । प्रेशर कुर्सी, चारपाई, या भूमि पर बैठकर जैसा भी सुविधाजनक प्रतीत हो, दे सकते हैं । पैरों में विभिन्न प्रतिबिम्ब केद्रों पर प्रेशर देने का एक आसान ढंग उपरोक्त आकृति में दर्शाया गया है
जीवन शक्ति
मनुष्य का शरीर एक अदभुत मशीन ही नही एक अनुपम शक्ति का विशाल भंडार हे । यह शक्ति प्रतिदिन, प्रतिक्षण उपयोग होती है, नष्ट होती है और शरीर से बाहर भी निकलती हे । इस लीकेज के कारण मनुष्य बीमार भी जल्दीपड़ता है तथा बुढापा भी जल्दी आता है इस लीकेज को रोकने का शरीर में एक ही केंद्र है – दांयी बाजू पर कलाई एंव कुहनी के मध्ये भाग में(आकृति 9 ) लगभग एक इंच का क्षेत्र । इस केंद्र पर प्रतिदिन सवेरे एक मिनट तक अँगूठे से प्रेशर देने से अपनी जीवन शक्ति को काफी लम्बे समय तक बचाकर रख सको है
प्रेशर देने का ढंग
प्रेशर देने का ढंग सबसे अधिक महत्व रखता है क्योंकि गलत ढंग से प्रेशर देने से वाँछित आराम नहीं होता । चीनी (Physicians) चिकित्सकों ने प्रेशर देने का उत्तम ढंग हाथ के अँगूठे, हाथ की तीसरी अंगुली, एक अंगुली पर दूसरी अंगुली रखकर, हाथ की मध्य की तीन अँगुलियों के साथ तथा हथेली के साथ बताया है जैसाकि आकृति नं० 1, 2, 3, 5, 6 तथा 7 में दर्शाया गया है । अंगूठा या अंगुली बिल्कुल सीधी खड़ी करके प्रेशर नहीं देना चाहिए (जेसे आकृति 4) क्योंकि इससे दबाव ठीक नहीं पढ़ता तथा प्रेशर देने वाली अँगुली मी शीघ्र थक जाती है। प्रेशर देने के प्रति महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि अँगूठा या अँगुली एक ही स्थान पर टिकाकर अगर दबाव घड़ी की सूई की तरह गोल परिधि (circular motion in clockwise direction) में बाएँ से दाई तरफ दिया जाये तो उसका अधिक असर होता है I वेसे साधारण विधि से भी अँगूठे या उपकरण से प्रेशर दिया जा सकता हे। दोनों तरीके ठीक है । पेरों तथा हाथों के ऊपरी भाग, पेरों तथा हाथों की अँगुलियों, टाँगों के निचले भाग, टखनों तथा एडीयों के साथ-साथ, कानों तथा बाजुओं के अग्रिम भाग पर तेल आदि लगाकर मालिश की भांति भी (pressure) प्रेशर दिया जा सकता है। पीठ पर उपकरणों से नहीं अपितु अंगूठों या हथेलियों से हीं प्रेशर देना चाहिए।
प्रेशर देते समय इतना ध्यान रखे कि उसका प्रभाव चमडी की ऊपरी सतह से नोचे तक पहुच जाये। इस बारे में एक तर्कसंगत कथन है कि जब शरीर के अंदर कोई विकार आता है तो उसका प्रभाव चमडी की ऊपरी सतह तक अनुभव होता हे I ठीक इसी प्रकार चमडी पर दिए प्रेशर का प्रभाव आंतरिक अंगो तक पहुँचता हे जो रोग दूर करने में सहायक होता हे ।
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Greedy Pigeon लालची कबूतर हिंदी कहानी
सरयू नदी के किनारे पीपल का एक बहुत ही पुराना पेड़ (old tree) था, सदियों पुराना पीपल का पेड़ हर यात्री के लिए तो आकर्षण था ही, किन्तु इसके साथ-साथ हजारों छोटे-बड़े पक्षी (bird) इस पीपल के पेड पर रहते थे दिन भर उड़ते हुए वे प्राणी अपने पेट की भूख मिटाते फिरते किन्तु-जेसे ही सूर्यास्त होने लगता तो वे सबके सब इस पेड़ पर बने अपने-अपने घोंसलों में आ जाते I
यंही पर इन पक्षियों का छोटा सा संसार बसा हुआ था, उन को सबसे अधिक डर उन शिकारियों से लगता था जो की उनके बसे हुए संसार को उजाड़ने के लिए आते थे,
कई बार जब भी कोई शिकारी (hunter) उस और आनिकलता तो बेचारे पक्षी डर के मारे कांपने लगते । उनके दिलों में ऐसा डर उठता कि उन्हें खाना पीना भी न लगता ।
उन्हें यह शिकारी नहीं, मौत के फरिश्ते नजर आया करते थे । इन पक्षियों के बीच मे ही लघुपतनक नाम का एक बुद्धिमान कौआ (Intelligent Crow) अपने परिवार सहित रहता था यह कौआ बहुत तीव्र बुद्धि का था । उस वृक्ष पर रहने वाले सारे पक्षियों का पूरा-पूरा ध्यान रखना उसका कर्तव्य था ।
एक दिन- सुबह-जैसे ही कौए की आँख खुली तो उसने एक शिकारी को अपनी ओर आते देखा थोड़ी देर पश्चात उस शिकारी ने अपनी पोटली में से चावल निकाले और पास के खुले मैदान में बिखेर दिया ।
कोए ने पीपल पर रहने वाले सारे पक्षियों की एक सभा बुलाई और उन सबसे कहा- देखों मित्रों यह दुष्ट शिकारी हमारा शिकार करने आया है ,तुम सब लोग होशियार रहना शिकारी ने धरती पर सफेद चावल बिखेर कर अपना जाल फैलाया है । यह चावल नहीं हमारी मृत्यु के वारंट है, इनसे बचना इस पापी से बचना ये बातें सुनकर सभी पक्षी अपने इस साथी का धन्यवाद करने लगे ।
और साथ ही चौकस होकर उस शिकारी की ओर देखने लगे जो नदिया किनारे बेठ कर बड़े आनन्द से गाने गा रहा था ।
हर बार उस शिकारी की नजर अपने बिछाये हुए जाल की जोर ही जाती है उसे तो सुबहे किसी शिकार की तलाश थी वः सोच रहा था की यदि कोई छोटा मोटा पक्षी भी उसके जाल में फस जाए तो वह उसे भूनकर खालेगा मांसाहारी आदमी की भूख तो मॉस से मिटती हे ।
उस शिकारी को क्या पता था कि कौए ने इस वृक्ष पर रहने वाले सारे जानवरों को पहले से ही होशियार कर दिया है वह तो यही आशा लेकृर आया था कि इस पेड पर सबसे अधिक पक्षी रहते हें, इनमें से कोई ना कोई इन चावलों को देखकर फंस जाएगा ।
मगर कौए ने उसकी सारी उमीदों पर पांनी फेर दिया था कुछ देरके पश्चात आकाश पर उड़ता सफेद कबूतरों (Pigeon) का एक परिवार शिकारी ने देखा उसके मुंह में…पानी भर आया ।
आहा सफेद कबूतर काश यह जालमेँ फस जाएं I”
कबूतरों ने चावलों को धरती पर बिखरे देखा तो उनकी भूख कुछ अधिक ही तेज हो गई उन्होंने अपने राजा मोती सागर से बोला महाराज चावत देखो आज सुबह-सुबह चावल खाने को मिले आज कितना आनन्द आएगा I
कबूतरों का राजा दूर द्रिष्टि का मालिक था उसने अपने कबूतरों को चोकस करते हु कहा सावधान “हो सकता हे” ये किसी शिकारी का जाल हो सोचों इतनी दूर जंगल में ये चावल कंहाँ से आए? लेकिन उसके साथी लालच (greedy) में आकर बोले की हो सकता हे ये किसी दयालु मनुष्ये ने हमारे लिए यंहा डाले हो “सारे कबूतरों ने अपने राजा से कहा”
में फिर कहता हूँ ये जरुर किसी शिकारी की चाल हे लेकिन लालची कबूतरों (Greedy Pigeon) ने राजा की बात नही मानी और वें शिकारी के जाल में फंस गए I
लालच एक बुरी बला हे हमे अपने बुजुर्गों की हर बात सदेव माननी चाहिए
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जानें ओजोन छिद्र के बारे में
हम सभी सूर्य (Sun) की पूजा करते हें और हमारा अडिग विश्वास हे कि पृथ्वी पर जीवन प्रकृति को एक अदूभुत्त देन हे जिसमें सूर्य का योगदान प्रधान एवं अद्वितीय है। भारत में तो सूर्य को देवता (God) मान कर उसकी पूजा होती है और हम देखते हैँ कि स्नान एव ईश्वर का ध्यान कर प्राय: लोग सूर्य को जल चढाते हैँ । यह देखकर वैज्ञानिकों को हेरत तो अवश्य होतीं है, जेसा मैंने स्वयं देखा है । समाज का एक बहूत बड़ा भाग जो अपने विवेक से प्रकृति एव परमात्मा में अन्तर नहीं समझ पाना, उसका यह विश्वास होता है कि सूर्य भगवान है जो हम सभी को जीवन प्रदान करता है। यह एक गूढ़ प्रश्न हे जहां विज्ञान भी बौना हो जाता हे और वैज्ञानिक इस प्रश्न का उत्तर देकर भी अपने आप को संतुष्ट नहीं कर पाते हैं। ऐसी दशा में इश्वर के प्रति आस्था और उसकी पूजा क संबंध में बड़े से बडा वैज्ञानिक (large scientist) भी अपने आप को असमर्थ पाता हे
हम सभी को ज्ञात हे कि सूर्यं जनित अनेक प्रकार की किरणे पृथ्वी के वायुमण्डल तक पहुंचती हैं। यदि ये किरणे बिना किसी रुकावट के पृथ्वी तक पहुंच जाएं तो जन-जीवन और पोधों का विनाश हो सकता है। यहीँ प्रकृति की विलक्षणता स्पष्ट दिखती है कि जन-जीवन की रक्षा के लिये ही ओजोन (0³) (Ozone layer) नामक अवयव की संरचना हुई। ओजोन (0³) की परत दिनमे प्रबल हो जाती हे जोकि सूर्यं के विनाशकारी विकिरण (Destructive radiation) को सोख लेती है। इस प्रकार पृथ्वी की सतह पर जन-जीवन एंव वनस्पति जीवन पर कोई प्रभाव नहीं पढ़ता है। यह सचमुच एक अद्वितीय उदाहरण हे की पृथ्वी एंव सूर्य किस प्रकार हमारी रक्षा करते हैं। पृथ्वी की सतह पर जीवन रक्षक पदार्थों की संरचना एंव इसका अनुपात कुछ इस प्रकार का बनता रहता हे कि जीवन के विकास में कोई बाधा न डालकर जीवन का सामयिक विकास करता रहता हे इन पदार्थों के अनुपात में किस प्रकार के परिवर्तन से पृथ्वी पर जनजीवन असमान्य हो जाता हे और फसलों का विनाश हो जाता है। यह पृथ्वी क वायुमंडल पर चतुर्दिक प्रभाव डालता हे परन्तु इसका प्रभाव सूर्य की स्थिति एंव दशा पर निर्भर करता हे दुनिया भर में सूर्य के विकीर्ण एंव पृथ्वी पर सूर्य की किरणों के आगमन का अध्यन होता रहता हे
जोकि मौसम की भविष्यवाणी के रूप मेँ उदूघोषित हुआ करता है और आने वाले समय के लिये इसकी भविष्यवाणी होती रहतीं है। आजकल भविष्यवाणी काफी हद तक सही सिद्ध होती हे जबकि कुछ समय पूर्व इस भविष्यवाणी पर कोई विश्वाश नहीं करता था और इसे मजाक के रूप मेँ लिया जाता था। अब मौसम की भविष्यवाणी पर विश्वाश कर किसान अपनी खेती करते हैँ और सदीं-गर्मी से बचाव का प्रबंधन भी समयानुसार करते रहते हैँ।
मौसम बिज्ञान की यह सफलता बडी लाभकारी सिद्ध हुई है।
वेज्ञानिक निष्कर्ष / scientist findings
(Science) विज्ञान के क्षेत्र में (ozone layer hole) ‘ओजोन होल’ यानी ‘ओजोन छिद्र’ एक सामयिक विषय है जिस पर वैज्ञानिकों की चर्चा हुआ करती है। यद्यपि इसके विषय में आज भी वैज्ञानिक पूर्ण रूप से जानकारी प्राप्त नहीं कर सके हैं I विज्ञान के छात्रो एंव दूसरे इच्छुक व्यक्तियों के लिये यह लेख लिखा गया है, आशा हे इसे पढ़ने कं पश्चात् पाठकगण अधिक ज्ञान प्राप्त कर सकेंगे
जाने शुक्र ग्रह के बारे में
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6 स्वास्थ्य वर्धक घरेलू नुस्खे health tips
1. जुकाम में अजवायन THYME का उपयोग
सर्दी जुकाम में बंद नाक की समस्या होने पर थोड़ी सी अजवायन को दरदरा पीस कर बारीक कपड़े में बाँध लें, इसे सूंघने से बंद नाक खुल जाती हे
2. स्वास्थ्य वर्धक सूत्र / HEALTH TIPS
भोजन के तुरंत बाद पानी ना पियें, क्योंकि इससे जठराग्नि मंद पड़ जाती हे और पाचन भी ठीक से नही हो पाता अतं: भोजन के एक डेढ़ घंटे बाद ही पानी पीना चाहिय, यदि अधिक आवश्यक हो तो भोजन के साथ एक दो घूंट पानी पी सकते हें
3. बच्चों के दांतों के लिए हल्दी
कच्ची हल्दी RAW TURMERIC या कच्चे आंवले का रस निकालकर, उसे बच्चो के मसूड़ों पर मलने से दांत आसानी से निकल आते हें
4. नेत्र ज्योति बढाने के लिए सरल प्रयोग
मोटी सोंफ तथा मिश्री बराबर मात्रा में लेकर पीस लें, इस मिश्रण को एक-एक चमच की मात्र में सुबह शाम पानी से लें, इस प्रयोग से आँखों की कमजोरी दूर हिती हे तथा नेत्र ज्योति बढती हे
5. आँखों की रौशनी के लिए
कच्चा पपीता सलाद के रूप में बच्चो व वयस्कों सभी को सेवन करना चाहिए, इससे आँखों की रौशनी बढती हे
6. अदरक से मुख की बदबू दूर
एक गिलास गुनगुने पानी में एक चम्मच अदरक का रस मिलाकर कुल्ला करने से मुख की दुर्गन्ध दूर हो जाती हे
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क्या यही महादेव हें यही शंकर सच्चा शिव हैं?
Rishi Dayanand ऋषि दयानन्द की उस समय आयु थी 14 वर्ष की। माता – पिता का इकलौता पुत्र …प्यार से पला हुआ, धर्मं-पूजा पाठ वेद- अध्ययन में रहता था। शिवरात्रि का व्रत ले रखा था। शिव-मन्दिर रात्रि के समय जब पूजा करते-करते लोग थक गये तो यह चौदह बर्ष का बालक जाग रहा था। उसकी आंखो मैं नीद न थी। वे भगबान् शंकर के दर्शनों के लिए खुली उसी का मार्ग जोह रही थी । किन्तु यह क्या ? क्या यही महादेव हें, यही शंकर सच्चा शिव हैं? पिता जी ने तो उनके और ही प्रकार के गुण का वर्णन किया था ।
बालक ने पिता जी को जगाया, और शिवमूर्ति तथा चूहों की और संकेत करते हुए पूछा ‘यह क्या हे’ जिस महादेव की प्रसान्त पवित्र मूर्ति की कथा जिस महादेव के प्रचंड पाशुपतास्त्र की कथा और जिस महादेव की विशाल वर्षारोहण की कथा गत दिवस व्रत के व्रतांत में सुनी थी, क्या वे महादेव वास्तव में ये ही हें?
इस प्रशन को सुनकर पिता बोले …” पुत्र इस कलिकाल मैं महादेव (SHIVA) के साक्षात् दर्शन नही’ होते । यह तो केवल देवता की मूर्ति (Statue of god) है, साक्षात् देवता नहीं।
बालक इस उतर से संतुष्ट नही हो सका, और वह मन्दिर (temple) से निराश होकर घर लोट आया और भोजन किया और सो गया प्रात काल पिता मन्दिर से लोटे और बालक के व्रत भंग की बात सुनकर क्रोध से बोले- तुमने बहुत बुरा काम किया पुत्र ने उतर में कहा पिताजी जब ग्रन्थ – कथित महादेव मन्दिर में थे ही नही तो में एक कल्पित बात के लिय व्रतोपवास का कष्ट क्यूँ सहन करता ?
ऋषि दयानन्द (Rishi Dayanand) के जीवन की ये पहली उलेखनीय घटना हे
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ऋषि दयानन्द और सच्चे महादेव की खोज
संसार में दो ही प्रसिद्ध स्थान हें जहाँ योगीज़न निवास करते हैं। एक-नर्मदा का तट, और दूसरा-उत्तराखण्ड महाराज न इन दोनों स्थानों को खोज डाला। नर्मदा नदी के तट पर की कुटियों में रहने वालों को देखा उतराखणड की कौनसी गुफा हैं, जिसमे’ महाराज नहीं पहुँचे ? कौनसा मठ हे , जहाँ जाकर योगियों का अनुसंधान उन्होंने नहीं किया? और अन्त में जिस प्रियतम की खोज में वे घर से निकले थे, जिस महादेव को पाने के लिए उन्होंने माता-पिता के प्यार को छोडा था, उसे योग-विद्या दवारा पा ही लिया। अब क्या बाकी रह गया था, जिसके लिए वे जीवित रहते?
ऋषि (Rishi Dayanand) कहते हैं-” ‘एक बार मन में यह विचार उत्पन्न हुआ कि इसी हिंमराशि में पड़े पड़े ही अपने प्राणा का अन्त कर दू। किन्तु थोडी ही देर मैं ज्ञान-लालसा इतनी प्रबल हो उठी कि मैने वह विचार छोड़ दिया’
तब ऋषि दयानन्द विशेष ज्ञान-विर्धी के लिए मथुरा पहुँचे। और स्वामी बिरजानन्द जी के पास तीन बर्ष रहकर ज्ञान के कोष में अधिक वृद्धि की।
जब विदा होने का समय आया. और गुरु दक्षिणा की बात चली तो गुरु ने कहा…”सौम्य” मैं तुम से किसी प्रकार के धन की दक्षिणा नहीं चाहता। तुम प्रतिज्ञा करो कि जितने दिन रहोगे, उतने दिन आर्यावर्त में आर्ष-ग्रंथो की महिमा स्थापित करोगे, अनार्ष-ग्रन्धों का खंडन करोगे. और भारत में वैदिक धर्म की स्थापना के निमित्त अपने प्राण तक अर्पण कर दोगे
और फिर ऋषि दयानन्द ने कहा की श्री महाराज देखेंगे की उनका प्रिय शिष्य उनके आदेश का किस प्रकार पालन करता हे
ऋषि को इतनी छोटी आयु में वैराग्य उत्पन हुआ और सच्चे शिव की खोज में निकलना एक सच्चे योगी के जीवन का चमत्कार ही हे इसी लग्न में ऋषि दयानन्द ने घने जंगलों भीषण पर्वत शिखाओं में अनेक योगियों से योग्विधा सिख कर संसार को जीने का सच्चा मार्ग दिखाया
योगश्चितवृत्तिनिरोधः चित की वर्तियों को सब बुराइयों से हटा के, सुभ गुणों में स्थिर करके, परमेश्वर के समीप में मोक्ष को प्राप्त करने को योग कहते हें, और वियोग उसको कहते हें की परमेश्वर और उसकी आज्ञा से विरुद्ध बुराइयों में फँस के उससे दूर हो जाना
जरा इसे भी देखें – क्या यही महादेव हें यही शंकर सच्चा शिव हैं?
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save mother cows समस्त जीवों की हत्या बंद हो
ओउम नमो नम: सर्वशक्तिमते जगदीश्वराय:
वे धर्मात्मा विद्वान लोग धनी हें, जो ईश्वर के गुण, कर्म, स्वभाव, अभिप्राय, सृष्टि-कर्म, प्रत्याक्षादि प्रमाण और आप्तों के आचार से अविरुद्ध चलके सब संसार को सुख पहुंचाते है और शोक है उन पर जो की इनसे विरुद्ध स्वार्थी दयाहीन होकर जगत में हानि करने के लिए वर्तमान है। पूजनीय जन वे है जो अपनी हानि होती हो तो भी सबका हित करने में अपना तन, मन, धन लगाते है, और तिरस्करणीय वे है जो अपने ही लाभ में संतुष्ट रहकर सबके सुखों का नाश करते है। save mother cows
सर्वशक्तिमान् जगदीश्वर ने इस सृष्टि में जो-जो पदार्थ बनाये है, वे निष्प्रयोजन नहीं, किन्तु एक-एक वस्तु अनेक-अनेक प्रयोजन के लिए रची है I इसलिये उन से वे ही प्रयोजन लेना न्याय अन्यथा अन्याय है । देखिये जिस लिये यह नेत्र बनाया है, इससे वही काम लेना सब को उचित होता है, न कि उससे पूर्ण प्रयोजन न लेकर बीच ही में वह नष्ट कर दिया जावे I क्या जिन-जिन प्रयोजनों के लिए परमात्मा ने जो-जो पदार्थ बनाये है, उन-उन से वे-वे प्रयोजन न लेकर उनको प्रथम ही नष्ट कर देना सत्पुरुषों के विचार में बुरा कर्म नहीं है ? पक्षपात छोड़ कर देखिये, गाय आदि पशु और कृषि आदि कर्मों से सब संसार को असंख्य सुख होते हैं वा नहीं ?
इसीलिये यजुर्वेद के प्रथम ही मन्त्र में परामात्मा की आज्ञा है ” अघन्या: यजमानस्य पशून् पाहि’ हे पुरुष ! तू इन पशुओं को कभी मत मार, और यजमान अर्थात् सब के सुख देनेवाले जनों के सम्बन्धी पशुओं की रक्षा कर, जिनसे तेरी भी पूरी रक्षा होवे । और इसीलिये ब्रह्मा से लेके आज़ पर्यन्त आर्य लोग पशुओं की हिंसा मैं पाप ओर अधर्म समझते थे , ओर अब भी समझते हैं । और इन की रक्षा से अन्न भी महंगा नहीं होता, क्योंकि दुध आदि के अधिक होने से दरिद्रो को भी खान पान में मिलने पर बहुत ही कम अन्न खाया जाता है, ओर अन्न के कम खाने से मल भी कम होता है । मल के कम होने से दुर्गन्ध भी कम होता है, दुर्गन्ध के कम होने से वायु और वृष्टिजल की शुद्धि भी विशेष होती है, उससे रोगों की न्यूनता होने से सबको सुख बढ़ता है।
इसलिए यह कहना भी उचित होगा कि गो (save mother cows) आदि पशुओं के नाश होने से राजा ओर प्रजा का भी नाश हो जाता है, क्योंकि जब पशु न्यून होते है, तब दूध आदि पदार्थ और खेती आदि कार्यों की भी घटती होती है । देखो, इसी से जितने मूल्य से जितना दूध और घी आदि पदार्थ तथा बैल आदि पशु 700 सातसौ वर्ष के पूर्व मिलते थे, उतना दूध (milk) घी और बैल आदि पशु इस समय दशगुणे मूल्य से भी नहीं मिल सकते। क्योंकि ७०० सातसौ वर्ष के पीछे इस देश में गवादि पशुओं को मारनेवाले मांसाहारी विदेशो मनुष्य बहुत आ बसे है l वे उन परोपकारी पशुओं के हाड़-मांस तक भी नहीं छोड़ते, तो ‘नष्टे मूले नैव फलं न पुष्पम्’ जब कारण का नाश कर दे तो कार्य नष्ट क्यों न हो जावे। अरे दुष्टों! क्या तुम लोग जब कुछ काल के पश्चात् पशु न मिलेंगे, तब मनुष्यों का मांस भी छोडोगें वा नहीं ? हे परमेश्वर ! तू क्यों न इन पशुओं पर, जो कि बिना अपराध मारे जाते हैं, दया नहीं करता ? क्या उन पर तेरी प्रीति नहीं है ? क्या इनके लिये तेरी न्याय-सभा बंद हो गईहै ? क्यों उनकी पीडा छुडाने पर ध्यान नहीं देता, और उनकी पुकार नही सुनता ? क्यों इन मांसाहारियों के आत्माओं में दया प्रकाश कर निष्ठुरता, कठोरता, स्वार्थपन ओर मूर्खता आदि दोषों को दूर नहीं करता जिससे ये इन बुरे कामों से बचें?
हिंसक-रक्षक संवाद :-
हिंसक- ईश्वर ने सब पशु आदि सृष्टि मनुष्य के लिये रची है, और मनुष्य अपनी भक्ति के लिये । इसलिये मांस खाने में दोष नहीं हो सकता I
रक्षक – भाई ! सुनो, तुम्हारे शरीर को जिस ईश्वर ने बनाया है, क्या उसी ने पशु आदि के शरीर नहीं बनाये है ? जो तुम कहो कि पशु आदि हमारे खाने को बनाये हैं, तो हम कह सकते है कि हिंसक पशुओं के लिये तुमको उसने रचा है, क्योंकि
जैसे तुम्हारा चित्त उनके मांस पर चलता है, वैसे ही सिंह, गृघ्र आदि का चित् भी तुम्हारे मांस, खाने पर चलता है, तो उन के लिये तुम क्यों नहीं ?
हिंसक – देखो, ईश्वर ने पुरुषों के दांत कैसे पैने मांसाहारी पशुओं के समान बनाये हैं । इससे हम जानते हैं कि मनुष्यों को माँस खाना उचित है।
रक्षक – जिन व्यघ्रादि पशुओं के दांत के दृष्टान्त से अपना पक्ष सिद्ध करना चाहते हो, क्या तुम भी उनके तुल्य ही हो ? देखो, तुम्हारी मनुष्य जाति उनकी पशु-जाति, तुम्हारे दौ पग और उनके चार, तुम विद्या पढ़ कर सत्यासत्य का विवेक कर सकते हो वे नहीं । और यह तुम्हारा दृष्टान्त भी युक्त नहीं, क्योंकि जो दांत का दृष्टान्त
लेते हो तो बन्दर के दांतों का दृष्टान्त क्यों नहीं लेते ? देखों बंदरों के दांत सिंह, मौर व बिल्ली आदि के समान है ओर वे मांस नहीं खाते । मनुष्य और बंदर की आकृति के भी है । इसलिये परमेश्वर ने मनुष्यों को दृष्टान्त से उपदेश किया है कि जैसे बंदर मांस कभी नहीं खाते और फलादि खाकर निर्वाह करते है, वैसे तुम भी किया करो I जैसा बंदरों का दृष्टान्त सांगोपांग मनुष्यों के साथ घटता है, वैसा अन्य किसी का नहीं । इसलिये मनुष्यों को उचित है कि मांस सर्वथा छोड़ देवें।
हिंसक – तुम लोग शाकाहारी-शाकाहारी कहते हो क्या वृक्षादि में जीवन नहीं ?
रक्षक – बिलकुल जीवन है। परन्तु जैसा तुम मानते हो वैसा नहीं। वृक्षादि सुषुप्त अवस्था में रहते है अत: उनमें सुख-दुःख की अनुभूति नाम-मात्र ही है। वेदों में उनका भी आवश्यकता अनुसार उचित मात्रा में उपयोग करने की आज्ञा है। देखो ! जब हम पशु आदि को मरते है तो वे कितना रोदन आदि विलाप करते है जबकि वृक्षादि में वैसा नहीं।
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Haridwar हरिद्वार के कुम्भ में धर्मप्रचार
27 फरवरी 1879 से 11 अप्रैल 1879 तक
ऋषि दयानन्द रूडकी से ज्वालापुर आए जहॉ मुख्यत: हरिद्वार (Haridwar) के पण्डे रहते हैं। यहॉ सात दिन तक ठहरे और 27 फरवरी 1879 को हरिद्वार (Haridwar) आकर श्रवणनाथ के बाग तथा निर्मले साधुओं (Sadhus) की छावनी के निकट मूला मिस्त्री के खेत में डेरा डाला। जो आर्य लोग हरिद्वार आए थे, वे भी स्वामीजी के समीप आ गए। आते ही समस्त मार्गों, घाटों, पुलों तथा मन्दिरों पर एक विज्ञापन (advertisement) लगवा दिया जिसमें स्वामीजी ने अपने आने की सूचना तो दी ही, अपने मन्तव्य भी लिख दिए तथा लोगों को धर्मंचर्चा हेतु आमत्रित किया।
इस विज्ञापन का अंतिम भाग
इसलिए आर्यों के इस महासमुदाय में वेद-मन्त्रों द्वारा सब सज्जन मनुष्यों के हित के लिए ईंश्वराज्ञा का प्रकाश संक्षेप से किया जाता हैं। फिर इसके नीचे ऋग्वेद मण्डल 1 सूक्त 71 मन्त्र 5, 6 व ।0 को लिखकर उनकी व्याख्या की और ऐतरेय, तैत्तिरीय, आरण्यक (उपनिषद) का एक-एक वाक्य लिखकर उनके अर्थ भी लिख दिए और समाप्ति में यह प्रार्थना की -की “यह बड़े आश्चर्य की बात है कि पृथिवी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, सूर्य, चन्द्र, वर्षा और ऋतु मास, पक्ष, दिन, रात्रि, प्रहर, मुहूर्त, घडी, पल, क्षण, आँख, नाक आदि शरीर, औषध, वनस्पति, खाना-पीना आदि व्यवहार ज्यों के त्यों हैं (अर्थात् जैसै ब्रहा कै समय से लेकर जेमिनी मुनि के समय तक इस देश में थे ) फिर हम आर्यों की दशा क्यों पलट गई है आप अत्यन्त विचारपूवंक देखो कि जिसका फल दुःख वह धर्म और जिसका फल सुख वह अधर्म कभी हो सकता है? अपनी दशा अन्यथा होने का यही कारण है जो ऊपर लिख आए हैं अर्थात वेद-विरुद्ध चलना या फिर उस प्राचीन अवस्था की प्राप्ति (रीति) वेदानुकूल आचार पर चलना है, और वह आचार यह (aryavart) आर्यावर्त-निवासी आर्य, आर्यसमाजों के सभासद करना और कराना चाहते हैं कि संस्कृत-विद्या के जाननेवाले स्वदेशीय मनुष्यों की वृद्धि के अभिलाषी परोपकारक निष्कपट होकर सब को सत्यविद्या देने की इच्छा-युवत धार्मिक विद्वानों की उपदेशक-मण्डली और वेदादि स्त्शाश्त्रों को पढने के लिए नियत किया चाहते हैं इसमें जिस किसी की योग्यता हो वो इस परोपकारी मोहतम कार्य में परवर्त हो “जिससे मनुष्य मात्र की शीघ्र उन्ती हो सकती हे ” आदि ।
इस अन्तिम अपील में स्वामीजी ने प्रकट किया कि वे दो विषयों को सुधार का मुख्य कारण समझते हैँ…प्रथम, उपदेशक-मण्डली ऐसै मनुष्यों की हो जो संस्कृतवेत्ता, स्वदेशीय मनुष्यउन्ती के अभिलाशी, परोपकारी, निष्कपट, सबको सत्य विद्या देने की इच्छावाले, धार्मिक विद्वान् हों और दूसरा, वेदादि सत्यशाश्त्रों के पढने के लिए पाठशाला स्थापित होनी चाहिए ।
इस बार कुम्भ (Kumbh) में बडी भीड़ थी। स्वामीजी ने अपने 12 अप्रैल के पत्र में लिखा कि अब तक दो लाख आदमी मेले में आ चुके हैं। अभी पर्व समाप्त
होने में 15 दिन बाकी हैं। पर्व के मुख्य दिन तो बहुत बडी संख्या में लोग आए। 1924 वि० के कुंम्भ से दुगुनी भीड़ थी। गंगा के किनारे आठ-दस कोस तक यात्री ही यात्री नजर आते थे। स्वामीजी ने इस पौराणिक दल में अपनी ध्वजा फहराकर वैदिक धर्मं का डंका बजाया’ मूर्तिपूजादि पौराणिक सिद्धान्तो का प्रत्यक्ष खण्डन किया। अनेक ब्राह्मण, संयासी, बैरागी और निर्मंले साधु विचार के लिए आते और स्वामीजी के स्पष्ट खण्डन से रुष्ट होकर चले जाते। कईं तो यहॉ तक कह जाते कि इच्छा तो होती है तुम्हें मार डालूँ क्योकि तुमने हमारी जीविका छीन ली है। परन्तु उनका बस नहीं चलता। काशी के स्वामी विशुद्धानन्द भी आए थे। एक अन्य सतुआ स्वामी भी आए थे जो अच्छे विद्वान् माने जाते थे और कनखल में ठहरे थे। सुखदेव गिरि और जीवन गिरि नामक दो साधु भी पपिडत गिने जाते थे । स्वामीजी ने विचार-विमर्श के लिए सबको पत्र भेजे, परन्तु कोई सामने नहीं आया।
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ब्रहाचारी मुलशंकर
Brahmachari Mulshankar (ऋषि दयानन्द) घर से निकलकर आठ मील की दूरी के एक ग्राम में उन्होंने वह रात्री काटी और एक पहर रात रहने पर वहां से चलकर उसी दिन एक गॉव के हनुमान मंदिर (Hanuman Temple) में रात्रि व्यतीत की। यह मार्ग उन्होंने निश्चित राजमार्ग (Hi way) पर चलकर तय नहीं किया, अपितु पगडंडियों और टेढे- मेढ़े रास्तों से होकर चले ताकि रास्ते में आता-जाता कोई पहचान न ले । यह सावधानी आवश्यक थी, क्योंकि गृहत्याग के तीसरे दिन उन्होंने एक राजकर्मचारी (government employee) से सुना किं मूलशंकर (Mulshankar) नामक एक युवक को सिपाही तलाश कर रहे हैं। यहाँ से जब वे आगे चले तो उन्हें साधुओं के वेश में कुछ ठग मिले जिन्होने उनके शरीर पर धारण किये आभूषण (Jewelery), अँगूठी तथा कुछ अन्य द्रव्य यह कहकर ले लिए कि जब तक वे इनका त्याग नहीं करेंगे, उन्हें पूर्ण वैराग्य कैसे मिलेगा। इन ठगों के पास कोई देव मूर्ति थी जिसके आगे उन्होंने वें वस्तुएँ ‘भेट-रूप में रखवा लीं।
यहाँ से चलकर मूंलशंकर सायला नामक ग्राम में पहुचे जहाँ उन दिनों लाला भक्त नामक एक वैष्णव साधु रहते थे जो योगी लाला भक्त के नाम से विख्यात थे । यहाँ आने पर मूलशंकर ने एक अन्य ब्रह्मचारी से नैष्ठिक ब्रह्मचर्य की दीक्षा ली । अब उनका नाम ब्रह्मचारी (Brahmachari) शुद्ध चेतन्य हो गया उन्हें पात्र रूप में एक कमंडल दिया गया और वें योग साधना में तत्पर हुए । एक रात्री जब वें एक वृक्ष के निचे योगाभ्याश पूर्वक ध्यान (meditation) में बेठे थे, उन्हें पेड़ पर बेठे पक्षियों का रव सुनाई पड़ा ।वे भयभीत हो गए। भूत-प्रेतादि संस्कारों से अभी उन्हें मुक्ति नहीं मिली थी , अत: एकान्त त्यागकर साधुओं की मण्डली में आगए।
यहाँ से चलकर ब्रह्मचारी शुद्ध चैतन्य कोट काँगड़ा नामक स्थान पर आए। यह स्थान अहमदाबाद के निकट हे। यहाँ पर उन्होंने बहुत से वेरागियों को देखा। किसी राज्य की एक रानी भी उनके फ़न्दे में फेंसी उनके समीप ही थी। उन वैरागिओं ने अकारण ही शुद्ध चैतन्य का उपहास किया और उन्हे’ अपनी मण्डली में प्रवेश करने के लिए कहा। इस पर शुद्ध चैतन्य ने घर से पहने रेशमी वस्त्रों को त्याग दिया और सादे वस्त्र पहन लिए। यहाँ पर वे तीन मास तक रहे। यहाँ पर रहते हुए ही उन्हें ज्ञात हुआ कि सरस्वती नदी के तट पर बसे सिद्धपुर में कार्तिक मास में प्रतिवर्ष मेला लगता है जहाँ हजारो’ साधु, महात्मा तथा योगी जन आते हैं। यह सोचकर कि वहाँ कोई उच्च कोटि का योगी अवश्य मिलेगा, शुद्ध चैत्तन्य सिद्धपुर की ओर चल पडे। रास्ते में उन्हे’ एक साधु मिला जो उनके परिवार का परिचित था। इनसे भेंट कर एक बार तो ब्रह्मचारी शुद्ध चैतन्य को रोना आ गया। अभी वैराग्य मैं द्रडता भी नहीं आई थी । उन्होंने इस ‘परिचित वैरागी से अपना हाल कहा। पहले तो उसने मूलशंकर को घर छोड़ने के लिए बुरा… भला कहा, किन्तु शुद्ध चैतन्य को अपने संकल्प से विचलित नहीं कर सका।
अन्तत: ब्रह्मचारी शुद्ध चैतन्य सिद्धपुर आए और नीलकंठ महादेव के मंदिर में डेरा किया जहाँ पहले से ही अनेक साधुगण ठहरे थे। मेले मेँ जिस किसी विद्वान् योगी की चर्चा सुनते, वे, उसके निकट अवश्य जाते और सत्संग का लाभ उठाते। सिद्धपुर आते हुए मार्ग में जो वैरागी मिला था, उसने मूलशंकर का सारा हाल उनकै पिता को लिख भेजा और उनके वर्तमान में सिद्धपुर में होने की सूचना भी दे दी। यह समाचार पाते ही मूलशंकर के पिता चार सिपाहियों को साथ लेकर वहाँ आ गए और नीलकंठ के मंदिर में उन्हें जा पकड़ा। जब उन्होंने पुत्र को साधू वेश में ‘देखा तो क्रोध में आकर अनेक कठोर वाक्य कहकर उनकी भर्त्सना की। यहाँ तक कहा कि तुमने हमारे परिवार पर कलंक लगाया है। तेरी माता तेरे वियोग में मरणोन्मुख है। पिता के इस क्रोध ने उन्हें भयभीत कर दिया। डर के मारे वे पिता के चरणों में गिर पड़े और कह दिया कि लोगों के बहकाने में आकर वे घर से निकल पड़े हैं। आप क्रोध न करें। मुझे क्षमा कर दें। यह भी कह दिया कि मैं आप के साथ घर लौटने के लिए तैयार हूँ। इन बातों से भी पिता का क्रोध शान्त नहीं हुआ और उन्होंने आवेश में आकर पुत्र के साधुओं वाले वस्त्र फाड़ डाले। उनका तूम्बा भी तीड़ दिया और कहा कि तू मातृहन्ता है। उन्होंने पुत्र को नवीन वस्त्र दिए तथा अपने डेरे पर ले आए। मूलशंकर के घर लौट चलने के कथन का भी उन्हें विश्वास नहीं हुआ रात्रि को भी मूलशंकर पहरे में रहे। वे यद्यपि प्रकट रूप में तो पिता से कह चुके थे कि घर लौटने में उन्हे’ आपत्ति नहीं है, किंन्तु अपने मन में वे दृढ़ थे और अपने निर्धारित वैराग्य-पथ पर ही बढ़नै की प्रबल भावना लिए थे। दैववश रात के तीसरे पहर में प्रहरियों को भी नींद आ गईं और शुद्ध चैतन्य ने यह अवसर भाग निकलने के लिए उपयुक्त माना।
वै चटपट वहाँ से चल पड़े और एक वृक्ष के सहारे निकट के एक मंदिर की छत पर जा बैठे। उनके हाथ में एक जल-पात्र अवश्य था। यदि कोई पूछता तो यह कहने का बहाना था कि शौच के लिए निकले हैं। जब वे उस एकान्त में चुपचाप छिपे बैठे थे, उन्होंने देखा कि वही पहरे वाले सिपाही उनकी तलाश में उधर आए और आसपास के लोगों से पता कर रहे हैं। इस प्रकार शुद्ध चैतन्य को वह सारा दिन मंदिर की छत पर बैठे ही व्यतीत करना पड़।। जब दिन छिप गया तो वे उतरे और मुख्य मार्ग को छोड़कर दो कोस दूर एक गॉव तक आ गए। सवेरा होने पर फिर वहाँ से चल पड़े। अपने पिता से उनकी यही अन्तिम भेंट थी। अब वे अहमदाबाद होते हुए वडोदरा पहुँचे। यहाँ उन्हें जिन संन्यासियों का सानिध्य मिला, वे शंकर मत को माननेवाले वेदान्ती थे। उनर्क सम्पर्क में आकर शुद्ध चैतन्य ने भी नवीन वेदान्त को स्वीकार किया। यहाँ पता चला कि नर्मदा के तटवर्ती क्षेत्र में साधुओं की एक बृहत् गोष्ठी होने बाली है। उसमें भाग लेने के लिए चले। यहाँ उन्हें नाना शास्वी के ज्ञाता स्वामी सच्चिदानंद नामक एक सन्यासी मिले जिनसे उनका विस्तृत वार्तालाप हुआ। अन्तत: वे अपने गन्तव्य स्थान पर पहुँचे और स्वामी परमानन्द परमहंस के निकट ‘वेदान्त-सार’ तथा ‘वेदान्त परिभाषा’ आदि शाङ्कर मत र्क ग्रन्धों का अध्ययन करने लगे।
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क्या यही महादेव हें यही शंकर सच्चा शिव हैं?
