
क्रांतिकरियों के नायक 'चन्द्रशेखर आजाद' जिन्होंने ब्रिटिश सरकार के अभेद दमन चकर को नेस्तोनाबूद कर, भारत को आजादी का मुकुट पहनने में सहयोग किया, आजाद जी ने प्रण लिया था की- ' में आजाद हूँ ', आजाद रहूँगा, मेरे जिन्दा रहते कोई भी मुझे गिरफ्तार करना तो दूर छु भी नही सकता,
आजाद जी का आखरी सफर
आजाद जी के पीछे कुछ गद्दार लोगों की टोली पड़ी हुई थी, जो कभी आजाद जी के साथी रह चुके थे, वें स्वार्थ और धन के लोभ में अन्धे होकर आजद जी को पकडवाकर अंग्रेज सरकार से पुरस्कार लेना चाहते थे, आजाद जी को इन सबकी भनक थी, इसलिए उन्होंने इलाहाबाद आकर अपनी गतिविधियाँ सिमित करली थी, फिर भी उन्हें आजादी की लड़ाई के लिए काम तो करना ही होता था,
इलाहबाद में आजाद हें इस बात की सुचना गुप्तचर विभाग को लग चुकी थी, गुप्तचर विभाग ने आजाद जी को पहचानने वाले मुखबिरों को बुलालिया और शहर के चप्पे चप्पे पर लगा दिया, गुप्तचर विभाग का इंस्पेक्टर विश्वेश्वर सिंह इलाहबाद आगया था, एक दिन एक गोर रंग का मंझोले कद का एक यूवक इंस्पेक्टर के पास आया, विश्वेश्वर सिंह ने उससे पूछा आज इतनी सुबहा केसे आना हुआ कोई ख़ास काम हे क्या,
युवक बोला जल्दी चलिए मेने आजद और उसके साथियों को जाते हुए देखा हे , विश्वेश्वर सिंह ने कहा यदि तुम्हारी बात गलत निकली तो ये तुम्हारे लिए अच्छा नही होगा, इससे पहले भी एसी सूचनाएं झूटी निकल चुकी हें, युवक ने कहा मेरी बात पर यकीं कीजिये आजद भी साथ में हें
इंस्पेक्टर ने उसे अपने साथ चलने को कहा और वे जल्दी से पुलिस कप्तान नाट बाटर के बंगले की तरफ भागे जारहे थे, इधर आजाद भी अपने साथियों को छोड़ कर पार्क में आगये, सुखदेव उनके साथ था दोनों पेड़ के निचे बेठ कर बातें करने लगे, तभी आजाद की नजर पार्क के बहार सडक पर गयी और वो चोक कर बोले जान पड़ता हे 'वीरभद्र तिवारी' जा रहा हे,
परन्तु आजाद जी को कोई खाश शक नही हुआ और वो बातें करने में वयस्थ हो गये, अचानक ही एक तरफ से गोली आई और आजाद जी की टांग में धंस गयी उन्होंने तुरंत अपनी बंदूक निकाली और सावधान हो गये, आजाद ने भी गोली चलानी शुरू करी और नाट बाटर की कलाई को तोड़ डाला, और इस एक गोली ने नाट बाबर के छक्के छुड़ा दिए और वो भागने लगा, आजाद ने देखा कंही वो मोटर पर बेठ कर भाग न जाये उन्होंने एक और गोली चलादी और मोटर का इंजन चूर हो गया, और वो भाग कर एक पेड़ के पीछे छिप गया,
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आजाद पर चारो तरफ से गोलियों की बोछार हो रही थी अचानक झाड़ियों के उपर से एक सिर चमका वो सिर विश्वेश्वर सिंह का था उसकी गोली ने ही आजाद की बांह को छेद दिया था, आजाद ने एक गोली सीधे उसके जबड़े पर मारी और उसे वन्ही चित कर दिया, और सभी सिपाही घबरा गये,
तब तक आजाद की बंदूक में एक ही गोली बच्ची थी, उन्होंने अपने को पुलिस के हवाले नही किया बल्कि उस आखरी गोली से खुद को मार लिया,

पार्क में जिस पेड़ के निचे आजाद जी ने अपनी जीवन का बलिदान दिया था उस इमली के पेड़ को अंग्रेजों ने कटवादिया, आज उसी इस्थान पर आजाद जी की मूर्ति इस्थापित हे
(एसा भी कहा जाता हे की आजाद जी की सुचना अंग्रेजों को नेहरु ने दी थी )