
बालक ने पिता जी को जगाया, और शिवमूर्ति तथा चूहों की और संकेत करते हुए पूछा 'यह क्या हे' जिस महादेव की प्रसान्त पवित्र मूर्ति की कथा जिस महादेव के प्रचंड पाशुपतास्त्र की कथा और जिस महादेव की विशाल वर्षारोहण की कथा गत दिवस व्रत के व्रतांत में सुनी थी, क्या वे महादेव वास्तव में ये ही हें?
इस प्रशन को सुनकर पिता बोले …" पुत्र इस कलिकाल मैं महादेव (SHIVA) के साक्षात् दर्शन नही' होते । यह तो केवल देवता की मूर्ति (Statue of god) है, साक्षात् देवता नहीं।
बालक इस उतर से संतुष्ट नही हो सका, और वह मन्दिर (temple) से निराश होकर घर लोट आया और भोजन किया और सो गया प्रात काल पिता मन्दिर से लोटे और बालक के व्रत भंग की बात सुनकर क्रोध से बोले- तुमने बहुत बुरा काम किया पुत्र ने उतर में कहा पिताजी जब ग्रन्थ - कथित महादेव मन्दिर में थे ही नही तो में एक कल्पित बात के लिय व्रतोपवास का कष्ट क्यूँ सहन करता ?
ऋषि दयानन्द (Rishi Dayanand) के जीवन की ये पहली उलेखनीय घटना हे